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जलोड़ी दर्रा की बर्फ से ढकी खामोश वादियाँ पर्यटकों को करती है आकर्षित

जलोड़ी दर्रा की बर्फ से ढकी खामोश वादियाँ पर्यटकों को करती है आकर्षित।


वर्फबारी के दौरान करीब तीन माह तक जलोड़ी मार्ग पर वाहनों की आवाजाही रहती है बाधित। 


जलोड़ी दर्रा वहाल होते ही यहाँ पर उमड़ता है पर्यटकों का सैलाब, मूलभूत सुविधाओं की कमी।


लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया।


गुशैनी, हिमाचल प्रदेश ।


लोड़ी दर्रा हिमाचल प्रदेश के कुल्लु जिला में हिमालय पर्वत की चोटी पर स्थित एक ऊँचा दर्रा है जिसकी ऊँचाई समुन्द्र तल से करीब से दस हजार फुट है। यह दर्रा इनर सराज और बाह्य सराज के मध्य स्थित कुल्लु जिला के बंजार और आनी उपमण्डल को आपस में जोड़ता है। जलोड़ी दर्रा से पूर्व की ओर बाह्य तथा पशिचम की ओर इनर सराज का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। यहाँ तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। यह दर्रा सर्दियों के मौसम में भारी बर्फबारी होने के कारण अक्सर मध्य दिसम्बर माह से फरवरी माह तक वाहनों की आवाजाही के लिए बन्द रहता है जो आमतौर पर हर साल मार्च माह के दूसरे सप्ताह में खुलता है। इस दौरान वाह्य सराज के आनी और निरमंड खण्ड की 58 पंचायतों के हज़ारों लोगों को जिला मुख्यालय कुल्लु में अपने सरकारी व जरूरी कार्य करने के लिए जलोड़ी दर्रा हो कर पैदल ही करीब 6 से 8 फुट बर्फ के बीच बंजार पहुंचना पड़ता है या तो उन्हें भारी भरकम पैसा खर्च करके वाया शिमला करसोग व मंडी होकर कई किलोमीटर का सफर तय करके जिला मुख्यालय कुल्लु पहुंचना पड़ता है।


जलोड़ी दर्रा, जिभी, शोजागढ़, रघुपूर गढ़, खनाग, टकरासी और सरेउलसर झील जैसे प्राकृतिक सौंदर्य से लवरेज खूबसूरत स्थल वर्षों पहले ही साहसिक पर्यटन के नक्शे पर आ चुके हैं। यह स्थल अंग्रेजी शासन के समय से ही देशी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते रहे हैं। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अंग्रेजों को भी खूब भाता था जो अक्सर यहाँ पर आते जाते रहते थे, यहां पर उन्होंने उस समय शोजागढ़ में अपने ठहरने के लिए एक गेस्ट हाउस का निर्माण किया था जहाँ पर ठहराव के पश्चात वह आगे शिमला का सफर तय करते थे। यह गेस्ट हाउस आज भी यहाँ भर्मण करने वाले अतिथियों क लिएे हर समय उपलब्ध रहता है। इसके अलावा इस समय शोजागढ़ में वन विभाग द्वारा बनाया गया एक अन्य सरकारी रेस्ट हाउस भी उपलब्ध है।


आजकल भारी बर्फवारी के कारण जलोड़ी दर्रा समेत पूरी जिभी घाटी अपनी अलग ही खुबसूरती पेश कर रही है। यहाँ की पहाड़ों का दृश्य मौसम के साथ साथ बदलता रहता है हर मौसम में यहाँ की वादियाँ अपना अलग अलग आकर्षण व नजारा पेश करती है जो मौसम बदलते ही यहाँ की वादियों का रंग रूप भी बदल जाता है। यहाँ पर बर्फ से ढकी चोटियाँ, हरे भरे जंगल, ऊँचे पहाड़ों से गिरते हुए झरने, परिन्दों की सुरलेहरिओं से गुनगुनाती धारें, उफनती गरजती नदियाँ,  सुरमयी झीलें, ढलानदार वादियाँ और चारागाहों जैसी अछूती दृश्यावली के कारण ही यह स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। हालाँकि अभी तक नाम मात्र पर्यटक ही इस स्थान पर पहुँच रहे हैं लेकिन दर्रा वहाल होते ही यहाँ पर पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ती है। गर्मियों के मौसम में यहाँ सरेउलसर जाने वाले रास्ते में अनेकों कैम्प साइटें लगती है।


जिभी घाटी व जलोड़ी दर्रा तक पर्यटक सड़क मार्ग द्वारा  आसानी से पहुँच सकते हैं। अगर दिल्ली चंडीगढ़ या मंडी की ओर से आना हुआ तो पहले एक छोटा सा कस्बा बंजार पड़ता है जहाँ से तीर्थन घाटी और जिभी जलोड़ी की ओर अलग अलग दिशा में सड़क मार्ग जाते हैं। बंजार से आग जलोड़ी दर्रा की ओर 8 किलोमीटर की दुरी पर एक सुन्दर गांव जिभी आता है जहां पर घाटी के दोनों ओर देवदार के हरे भरे जंगल बहुत ही खुबसूरत नजारा पेश करते हैं। जिभी में पर्यटकों के ठहरने के लिए अनेकों होमस्टे, कॉटेज व गेस्ट हाउस बने हुए हैं। यहां से आगे घ्यागी गांव होते हुए वेहद खूबसूरत स्थल शोजागढ़ पहुंचते हैं जहाँ से समस्त बंजार घाटी का दृश्य दृष्टिगोचर होता है। यहाँ से आगे करीब पांच किलोमीटर पर जलोड़ी दर्रा स्थित है जहाँ पर माता का एक भव्य मन्दिर और सराय बनी हुई है इसके अलावा यहाँ पर चाय नाश्ते के लिए कुछ ढाबे स्टॉल भी मौजूद हैं। जलोड़ी पास के दाईं तरफ को दो किलोमीटर के फासले पर रघुपूर गढ़ स्थित है जो काफी ऊँचाई पर होने के कारण पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण रखता है। जलोड़ी से उतर दिशा की तरफ पाँच किलोमीटर आगे एक अत्यंत ही खूबसूरत झील स्थित है जिसे सरेउलसर झील कहते है। यह झील समुद्र तट से करीब 3560 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस झील के आसपास खरशु और रखाल के बड़े बड़े पेड़ है जो बहुत ही सुहावने लगते है। जलोड़ी जोत से इस झील तक पैदल ही पहुंचा जा सकता है। इस झील के निर्मल जल की एक विशेषता यह है कि इसमें घास पत्ती का कोई तिनका नजर नहीं आता है क्योंकि यहाँ पर आभी नाम की चिड़ियाँ आसपास ही रहती है जब भी कोई घास का तिनका पानी में तैरता हुआ देखती है तो वह तुरन्त उसे उठा कर पानी से बाहर निकाल लेती है।


जलोड़ी दर्रा के आसपास और भी कई खुबसूरत और आकर्षक पर्यटन स्थल मौजूद हैं जिसमें तीर्थन घाटी का ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क, चैहनी कोठी, बाहु, गाड़ागुशैनी, खनाग, टकरासी, बशलेउ दर्रा, आनी और निरमंड आदि स्थल मुख्य रूप से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन चुके हैं। इन खुबसूरत स्थलों में ग्रामीण व साहसिक पर्यटन, शीतकालीन खेलों, स्कीइंग, हाईकिंग, ट्रेककिंग, पर्वतारोहण व अन्य साहसिक खेलों की आपार सम्भावनाएं है । सरकार को इन स्थलों में मूलभूत सुविधाएं जुटा कर पर्यटन के लिए विकसित करने की आवश्यकता है। हालाँकि आज से पहले भी सोझा जैसे स्थल पर टूरिस्ट कॉम्प्लेक्स बनाने के प्रयास कागजों में कई बार होते रहे लेकिन धरातल स्तर पर अभी तक सरकार की कोई भी योजना सिरे नहीं चढ़ सकी है। जलोड़ी दर्रा जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल में जहाँ गर्मियों के मौसम में पर्यटकों की भारी भीड़ रहती हैं यह स्थल अभी तक बिजली, पानी, पार्किंग और सार्वजनिक सौचालय जैसी कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।
      
दिल्ली से वाया चंडीगढ़ शिमला और आनी की तरफ से भी इन स्थलों पर सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं। आजकल जलोड़ी दर्रा वाहनों की आवाजाही के लिए बन्द पड़ा है हालांकि दो दिन पहले आनी की ओर से  बर्फवारी के कारण बन्द पड़े इस राष्ट्रीय उच्च मार्ग-305 को जलोड़ी पास तक वहाल कर दिया गया है जबकि बंजार की ओर से अभी तक करीब एक किलोमीटर सड़क से बर्फ़ हटाने का कार्य चला हुआ है। आजकल इस मार्ग पर सफर करना खतरे से खाली नहीं है क्योंकि यहाँ पर सड़कें काफी फिसलन भरी रहती है।


इस मार्ग को 12 महीनों यातायात के लिए खुला रखने के लिए लोगों की दशकों पुरानी टनल की माँग अब सिरे चढ़ती नजर आ रही है क्योंकि केन्द्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्रालय इस टनल की डी. पी. आर. को मंजूरी दे चुका है। इस टनल के बन जाने से आनी निरमंड के अलावा शिमला, रामपुर, किनौर और काजा के लाखों लोगों को फायदा होगा और यहाँ के पर्यटन को भी पंख लगेगें।
तीर्थन घाटी गुशैनी से परस राम भारती की रिपोर्ट।


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