सियासत मे जंग
उत्तर प्रदेश बड़ा सूबा बड़ी जिम्मेदारिया और उतनी ही बड़ी समस्याये। समाजवादी पार्टी को हराकर योगी जी का रामराज आने तक आज के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और उस समय के पार्टी अध्यक्ष का बड़ा रोल था क्योकी यह सरकार आई ही थी पिछड़ो के बल पर। योगी जी के गद्दी सम्हालने से पहले तक मुख्यमंत्री के रेस मे सबसे आगे अगर कोई नाम था तो वो दिनेश शर्मा का और सुर्खियो मे मनोज सिन्हा अपनी गणित भिड़ा रहे थे। पर उस समय भी केशव मौर्य को पार्टी तवज्जो देती रही और लोकसभा चुनाव तक सब कुछ ठीक ठाक ही चलता रहा हालांकी अन्दर खाने मे सब कुछ वैसा नही था जैसा दिख रहा था और अब जब इन दोनो की लडाई खुलकर सामने आ गयी है तो शायद यह भी तय है कि भाजपा का जाना भी यूपी से तय है क्योकी केशव मौर्य सुलझे हुए और जमीनी नेता है वो अलग बात है की उप चुनाव मे वो अपनी विरासत नही बचा पाये थे पर जनाधार पिछड़ो मे उनका तब भी था और अब भी है। आखिर कौन है जो योगी और केशव को लडाकर अपनी जमीन तैयार कर रहा है या फिर कही योगी जी नौकरशाही के गिरफ्त मे तो नही आ गये। हालांकी योगी आदित्यनाथ सबको साथ लेकर चलने मे सक्षम है और वो यह भी जानते है की पार्टी के एक बड़े चेहरे को नाराज़ कर वो आने वाले वक़्त मे अपना नुक्सान नही करवाना चाहते है क्योकी राम मन्दिर जैसा मुद्दा तो आसान हो गया ही है और केशव जैसा कट्टर हिन्दुत्व पिछडा नेता उनकी गद्दी के लिये बहुत जरूरी है। देखीये शायद आने वाले समय मे विभाग, अधिकार और काम के बटवारे के अलावा आला अधिकारियो पर अधिकार का योग योगी जी और केशव मौर्य खुद सुल्झा ले और सरकार और जनता मे पैदा हुई या की जा रही गलत फहमियो को खत्म करने का जुगाड भी कर ले शायद यही सही होगा बाकी होहिहे वही जो राम रुचि राखा और राम तो दोनो के उतने ही है।
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