दिल्ली में किसान आंदोलन पर सोशल मीडिया में सन्नाटा
ममता मल्हार
(किसान आंदोलन पर अतिथि लेखिका )
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
दिल्ली। इक्का-दुक्का छोड़कर खुद को दिनरात किसान सिद्ध करने में लगे लोग भी लव जिहाद डाबी अतहर पता नहीं किस-किस में व्यस्त हैं। आप हैरान मत होइएगा अगर बाद में इस आंदोलन को प्रायोजित बता दिया जाए। जैसे कुछ साल पहले हुए किसान आंदोलन में शामिल किसानों की सेहत का ही मजाक बनाकर उन्हें फर्जी बोल दिया गया था।
ये किसान भी सड़क पर खाना खा रहे हैं।।सरकार का दबाव बनाने का तरीका देखिये। जो ट्यूबवेल की धार में रोज सुबह उठकर मुंह धोते हैं उनपर पानी की बौछार डलवा रही है। आपके देश की जनता का ये वो हिस्सा है जो कड़कती ठंडी रातों में खेतों में पानी देने यूं निकल जाता है जैसे शाम को शहरी लोग तफरी पर।
अन्नदाता के आंदोलन को न तो उतना कवरेज दिखता है न उतना सपोर्ट और उसी के उगाए हुए अन्न से अपने पेट भरकर कंबल में दुबके लोग ज्ञान बांटते हैं। अब ये मत कहिएगा कि आप दाम चुकाकर खरीदते हैं उसमें क्या अहसान? तो ये जान लो वो उगाना छोड़ दें तो तुम्हारा दाम घर में ही पड़ा रह जायेगा।
किसान, आदिवासी सिर्फ मुद्दे बनकर रह जाते हैं। इनके भले के नाम पर कुछ नए नेता पैदा तो जरूर होते हैं मगर नेतागिरी में बालिग होकर भारत की गंगा-यमुना रूपी पार्टियों में ही समाहित हो जाते हैं। जय किसान जय जवान
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