कोरोनाकाल की मर्मस्पर्शी कहानी है ‘बनारस लॉकडाउन’-प्रो.निर्मला मौर्य
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कुलपति ने बनारस पुस्तक मेले में किया ‘बनारस लॉकडाउन’ का विमोचन
- बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत ने खुराफाती वायरस कोरोना से जंग जीतने के साथ लिखी कहानियों की सच्ची कहानी
- गलचउर के लिए मशहूर बनारस की अड़ियों ने जब चुप्पी ओढ़ ली थी, तब लेखक ने भय से आक्रांत शहर के नब्ज को शिद्दत से छुआ
प्रभा पांडेय
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
वाराणसी। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्याल की कुलपति प्रो.निर्मला मौर्य ने कहा कि कोरोना दंश से मौत के मुंह में जाकर वापस लौटने वाले जांबाज पत्रकार की मर्मस्पर्शी कहानी है ‘बनारस लॉकडाउन’। वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की यह पुस्तक सिर्फ बनारस ही नहीं, देश-दुनिया के कोविडकाल का दस्तावेज है। गलचउर के लिए मशहूर बनारस की अड़ियों ने जब चुप्पी ओढ़ ली थी, तब विजय विनीत ने खौफ के सन्नाटे में थमी हुई जिंदगी और धीमी हो चुकी हृदय के स्पंदन को किसने सुनने का साहस किया। ‘बनारस लाकडाउन’ में उन्होंने भय से आक्रांत बनारस के नब्ज को शिद्दत से छूने की कोशिश की है।
प्रो.मौर्य बनारस पुस्तक मेले के उद्घाटन के बाद वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत की चर्चित पुस्तक ‘बनारस लाकडाउन’ के विमोचन के अवसर पर बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि कोविडकाल में बनारस के घंटा-घड़ियाल और हर-हर महादेव के नारों की अटकी हुई आवाज को विजय विनीत ने अनकने की कोशिश और बनारसी मस्ती, उल्लास और पर्वों पर पड़ने वाले प्रभावों को उन्होंने बेहद मार्मिक ढंग से रचा है। यह इत्तिफाक नहीं है कि इन्होंने कोई किताब लिखी है, बल्कि उन्होंने कोरोनाकाल में लाकडाउन के दौरान 75 दिनों की जिंदगी को बड़ी संजीदगी से जिया है, जो अब शानदार पुस्तक की शक्ल में आप के सामने है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बीएचयू के प्रो.सदानंद शाही ने कहा कि ‘बनारस लॉकडाउन’ की भाषा काव्यमयी और बेहद रम्य है। विजय विनीत ने कोविड-19 के आतंक में जी रहे बनारस की न सिर्फ सूक्ष्म पड़ताल की, बल्कि वैश्विक महामारी के प्रकोप को संजीदगी के साथ जांचा-परखा। ‘बनारस लॉकडाउन’ कोई कल्पना की कोई उड़ान नहीं। जो सच था, लेखक ने उसे पल-पल जिया है। कोरोना के भयाक्रांत परिवेश में बनारस ने जो देखा, उसे लिख दिया।
साहित्यकार एसएस कुशवाहा ने कहा कि ‘बनारस लॉकडाउन’ लिख पाना सिर्फ इत्तेफाक नहीं हो सकता। यह साहस नहीं, दुःसाहस का काम था। जब लोग अपने घरों की खिड़कियां और दरवाजे बंद कर, दमघोटू कोरोना के भय में जी रहे थे, तो विजय विनीत सन्नाटे की छाती पर कदमताल करते नजर आ रहे थे। उन्हें अपनी जिंदगी का मोह नहीं था, ऐसा नहीं है, बल्कि बनारस के उन लाखों लोगों की जिंदगी से मोह था, जो इस लॉकडाउन में घुट-घुट कर जी रहे थे। उनकी आमदनी मरती जा रही थी। मानसिक संत्रास जीवन में असंतुलन पैदा कर रहा था। लोग सोच रहे थे, कहां पीछे छूट गया? सदियों पहले का हंसता खिलखिलाता हमारा बनारस? श्री विनीत ने इसका सटीक आकलन किया है।
बनारस के जाने-माने एक्टिविस्ट डा.लेनिन रघुवंशी ने कहा कि ‘बनारस लॉकडाउन’ रचने के लिए विजय विनीत ने चप्पे चप्पे की खाक छानी और जो देखा वह भयावह सच था। सांसारिक लोगों को मोक्ष देने वाले बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में कोरोनाकाल के रेशे-रेशे को लेखक ने उकेरा है। बनारस में लाखों लोग ऐसे हैं जो रोज कमाते-खाते हैं! लॉकडाउन के दिनों में उनका चूल्हा कैसे जला होगा? क्षुधा की आग आखिर किस वरदान से मिटती होगी? यह जानने की कवायद विजय विनीत ने की है। मैं कह सकता हूं कि ‘बनारस लॉकडाउन’ विपत्तियों की महागाथा और उसमें वैश्विक महामारी का निदान भी है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र दुबे ने कहा कि ‘बनारस लॉकडाउन’ कोरोनाकाल की प्रधानकृति है, जिसे कई पीढ़ियां संजोकर रखेगी। लेखक ने कोरोना के दंश से प्रभावित हुई बनारसी मस्ती और उल्लास को इंगित करते हुए बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रभावित हुए प्रवासियों व आम जनमानस समस्याओं को लोगों के सामने रखा है। साहित्यकार विनय वर्मा ने कहा कि ‘बनारस लॉकडाउन’ की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है कि कोरोनाकाल में लेखक विजय विनीत खुद इस महामारी की चपेट में आ गए। कोरोनासुर से इन्होंने जोश और हौसले के साथ जंग लगी। आखिर में उन्होंने इस खुराफाती वायरस को हरा दिया। पुस्तक में कोरोना से जंग का वृत्तांत बेहद रोचक और हर किसी के लिए प्रेरणादायी है।
समारोह में नरसिंह राम, सियाराम यादव, युवा लेखिका प्रियदीप कौर, डा.मनोहरलाल, डा.राममोहन अस्थाना, सत्यप्रकाश, अमरनाथ कुशवाहा, विजय कुमार मौर्य, पुष्पा मौर्य, कुमार विजय समेत बड़ी संख्या में गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे। इस मौके पर जाने-माने पब्लिशर फ्रंटपेज के निदेशक अभिजीत मजुमदार और समाजसेविका श्रुति नागवंशी को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन मेले के संयोजक मिथिलेश कुशवाहा ने किया। बनारस के छित्तूपुर में बनारस पुस्तक मेला 29 नवंबर 2020 तक चलेगा।
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