(पर्यावरण शोधकर्ता-पॉलिसी रिसर्च फाउंडेशन)
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
दिल्ली। प्रकृति प्रेमियों के लिए उत्तराखंड स्थित हरिद्वार एक स्वर्ग है, जहाँ इस वर्ष कुम्भ आयोजित हो रहा है। हरिद्वार भारतीय संस्कृति और सभ्यता की बहुरूपदर्शिका प्रस्तुत करता है। हरिद्वार को ‘ईश्वर का प्रवेश द्वार’भी कहा जाता है जिसे मायापुरी, कपिला, गंगाधर के रूप में भी जाना जाता है। भगवान शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमशः हरद्वार और हरिद्वार नाम से उच्चारण करते हैं। हरिद्वार चार स्थानों में से एक है; जहां हर छह साल बाद अर्ध कुंभ और हर बारह वर्ष बाद कुंभ मेला होता है। ऐसा कहा जाता है कि अमृत की बुँदे हर की पैड़ी के ब्रम्हकुंड में गिरती हैं इसलिए माना जाता है कि इस विशेष दिन में ब्रहमकुंड में किया स्नान बहुत शुभ है।
गंगा नदी की पहाड़ो से मैदान तक की यात्रा में हरिद्वार पहले प्रमुख शहरों में से एक है और यही कारण है कि यहां पानी साफ और शांत है। हरे भरे जंगल और छोटे तालाब इस पवित्र भूमि को प्राकृतिक सुंदरता से जोड़ते हैं। प्रतिदिन सांय हरिद्वार के सभी प्रमुख घाट गंगा नदी की आरती की पवित्र ध्वनि एवं दीपकों के दिव्य प्रकाश से प्रदीप्त होते हैं।
वर्ष २०२१ में होने वाले महा कुम्भ के लिए हरिद्वार में जोरो शोरो से कार्य चल रहा है। 82 साल बाद इस बार हरिद्वार कुंभ बारह की बजाय ग्यारह वर्ष बाद पड़ रहा है। इससे पहले 1938 में यह कुंभ ग्यारह वर्ष बाद पड़ा था। इस कारण प्रत्येक 8 वा कुंभ ११ वें वर्ष में पड़ता है। कुंभ मेले बारह वर्ष बाद आते हैं। कुंभ मानवीय आस्था और श्रद्धाका महापर्व है।
यह अकेला ऐसा मेला है जहां करोड़ों श्रद्धालु ज्योतिष के आधार पर जुटते हैं। बगैर किसी न्योते केश्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। 2021 में होने वाले कुंभ में भी देश-विदेश के श्रद्धालु शिव और गंगा की धर्मनगरीहरिद्वार में जुटेंगे। कुंभ किसी व्यक्ति या परिवेश विशेष का पर्व नहीं है। यह जनकुंभ है। हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आम आदमी से लेकर साधु-संत और खास लोगों के जमावड़े लगते हैं। केंद्र सरकार व् प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजना "नमामि गंगे" के अंतर्गत आगामी कुम्भ-२०२१ को देखते हुए हरिद्वार के सभी प्रमुख घाटों के सुंदरीकरण का कार्य पूरा कर लिया हैं। देश-विदेश से आने वाले सभी श्रद्धालुओं व् पर्यटकों की सुगमता व् सुरक्षा का ध्यान रखते हुए गंगा के सभी घाटों पर कूड़ेदान, स्नान के लिए घाटों की बैरिकेटिंग व् घाटों पर स्वच्छता का विशेष ध्यान दिया गया है।
आगामी कुम्भ २०२१-हरिद्वार को ध्यान में रखते हुए दीपावली पर ही राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से उत्तराखंड को बड़ा तोहफा मिला।
• कुम्भ मेले के दृष्टिगत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अनुरोध पर इसके तहत ८४.८५ करोड़ रूपये की स्वीकृति दी गयी है।
• हरिद्वार कुम्भ मेले में स्वच्छता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन एवं अन्य गतिविधियों के लिए ७९.१२ करोड़ रूपये, पेयजल निगम को २.५५ करोड़ रूपये एवं उत्तराखंड जल संसथान को २.९२ करोड़ रूपये की धनराशि इसमें शामिल है।
नमामि गंगे (राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन) के तहत हरिद्वार कुम्भ मेले में स्वच्छता के साथ ही ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की कार्य योजना के क्रियान्वयन में इस धनराशि की स्वीकृति से गति मिलेगी तथा कुम्भ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को इससे लाभ मिलेगा।
कुंभ का आयोजन चारों नगरों में 12 वर्ष बाद होता है। कुंभ का संयोग ग्रहों के गुरु बृहस्पति और भगवान भास्कर कीचाल पर निर्भर है। बृहस्पति कुंभ और सूर्य मेष राशि में आते हैं तभी कुंभ महापर्व का योग बनता है। इसी अमृत गंगा में स्नान कर अमरत्व पाने की लालसा में इस वर्ष लोग कुंभ नगरी उत्तराखंड में जुटेंगे। शाही स्नानों के लिए तीन दिन और नियत हैं। हालांकि, कुंभ का साल होने से मकर संक्रांति पर्व पर भी स्नान के लिए लोगों का सैलाब उमड़ेगा।
आचार्य प्रियव्रत शास्त्री बताते हैं, हिमालय आदि पर्वतों पर साधनारत ऋषि, मुनि कुंभ नगरी पहुंचेंगे। कुंभ के तमाम प्रबंध आस्था को संस्कृति से जोड़ने के लिए किए जाते हैं। कुंभ का स्वरूप प्रत्येक बार बदलता आया है। कभी कुंभ मेलों में ज्ञान वितरण और कथा वार्ता ही मुख्य आकर्षण थे। लेकिन, बदलते समय के साथ-साथ कुंभ का स्वरूप भी बदला।
2021 में भी कोरोनाकाल में आस्था, श्रद्धा और विश्वास की लोगों को हरिद्वार तक खींचेगा। हरिद्वार महाकुम्भ में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए १०७ घाटों पर कुल ५५ लाख श्रद्धालु प्रतिदिन स्न्नान कर सकेंगे ऐसी व्यवस्था राज्य सरकार ने अपनी गाइड लाइन में की है। इससे पहले कुम्भ में यह संख्या करोडो में होती थी। इधर, इस बार भीड़ काम होने की सम्भावना के चलते कुम्भ क्षेत्र को भी अस्थाई रूप से लगभग एक तिहाई तक कम किया गया है।
हरिद्वार में कुल सरकार के ६३ स्नान घाट है। इनमे कुछ पुराने तो कई हॉल के दिनों में तैयार किये गए है। आईजी कुम्भ संजय गुंज्याल ने बताया की सरकारी और प्राइवेट घाटों की संख्या १०७ हैं। इन पर स्न्नान की व्यवस्था सोशल डिस्टेंसिंग के साथ की जानी हैं। भारत सरकार के मानकों के अनुसार 1.8 मीटर की दूरी एक दूसरे के बीच होनी जरूरी है। इस हिसाब से सभी घाटों की क्षमता लगभग 55 लाख श्रद्धालुओं को एक दिन में स्नान कराने की है। सभी घाटों का कुल मिलाकर क्षेत्रफल लगभग 1.97 लाख वर्गमीटर है। इसी क्षेत्रफल के आधार पर औसत श्रद्धालुओं की संख्या आंकी गई है। ज्यादातर भीड़ मकर संक्रांति और बाद में शाही स्नानों पर होती है।
आईजी ने बताया कि पहले महाकुंभ में मेलाक्षेत्र कुल 32 सेक्टरों में बंटा था। 2021 के महाकुंभ के लिए 40 सेक्टर बनाने की तैयारी की जा रही थी। लेकिन, कोविड के चलते इन सेक्टरों को घटाकर 24 कर दिया गया है। महाकुंभ में ऋषिकेश व आसपास का क्षेत्र रिजर्व रहेगा, जरूरत पड़ने पर इन सेक्टरों को भी खोल दिया जाएगा।
पिछले कुछ महीनो से हरिद्वार घाटों पर काफी काम किया गया हैं जो की अब पूरी तरह से ख़त्म होने को हैं। आगामी कुम्भ २०२१ को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड में आयोजित कुम्भ में उसके सकारत्मक परिणाम नजर भी आने लगे हैं।
राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन व् इंडियन ऑयल ने संयुक्त रूप से हरिद्वार के हर की पौड़ी के घाटों के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया हैं। इसके अंतर्गत UPDCC के साथ हर की पौड़ी के प्रत्येक घाटों की स्वच्छता, सुरक्षा की दृष्टि से स्न्नान के लिए मजबूत बैरिकेटिंग, कूड़ेदान की व्यवस्था के अलावा महिलाओं व् बुजुर्गो के लिए नए चेंजिग रूम भी लगाए जा रहे हैं। हर की पौड़ी को नमामि गंगा के अंतर्गत घाटों के सुन्दरीकरण व् सभी गंगा घाटों के पुलों को पेंटिंग के माध्यम से श्रद्धालुओं के लिए आकर्षक भी बनाया जा रहा है। कोरोना महामारी के बाद सभी घाटों पर स्वछता का ध्यान रखते हुए कूड़ेदान व् साफ़ - सफाई पर ज्यादा जोर दिया गया है। सभी घाटों को पुनः मरम्मत कर श्रदालुओं की सुगमता का ध्यान रखते हुए घाटों की सीढ़िया व पुलों के बीच आने जाने में सुगमता के लिए भी मजबूत डिवाइडर भी बनाया गया हैं।
मेला अधिकारी दीपक रावत ने बताया कि गंगा घाटों के सौंदर्यीकरण, कांवड पट्टी मार्ग का चौड़ीकरण, सीसीआर क्षेत्र में श्रद्धालुओं को आकर्षित करने के लिए गार्डन, मुख्य हाईवे से लेकर कांवड पट्टी मार्गों पर वॉल पेंटिंग एवं दीवारों पर उत्तराखंड की संस्कृतिक एवं धार्मिक आस्था से जुड़ी आकर्षक कला कृतियां बनाई जा रही हैं। कई दीवारों पर रामायण लिखी जा रही है। मेला क्षेत्र के भवनों को एक रंग में रंगा जा रहा है। सभी प्रमुख चौराहों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। आस्था पथ तैयार हो रहा है। जो चंडी पुल से दीनदयाल पार्किंग को जोड़ेगा। ओपन थियेटर बनाए जा रहे हैं, जहां महाकुंभ के खुले में कार्यक्रम होंगे।
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