आखिर क्या है सहाय साहेब के इलाके में चार शिक्षकों वाले उच्च प्राथमिक विद्यालय कोटा पिंडारी के बंद होने का खेल
आखिर क्या है सहाय साहेब के इलाके में चार शिक्षकों वाले उच्च प्राथमिक विद्यालय कोटा पिंडारी के बंद होने का खेल
क्या सच में गोरखनाथ जी के लिए सहाय है जरूरी , भले ही हो जाए सोनभद्र के लोगो से शिक्षा की कोसो दूरी
यह खंड शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी हैं कि कोई भी विद्यालय बंद न रहने पाए किसी भी स्तिथि में। और बिना उनके आदेश के कोई भी ऐसा नहीं कर सकता क्योकि कोई ना कोई वैकल्पिक व्यवस्था करना अधिकारियों के हाथ में हैं। हो सकता हैं उनको खबर ही ना हो कोटा पिंडारी के इस स्कूल के बंद होने की ,क्योकिं मेरे बीमार होने की स्तिथि में भी छुट्टी नामंजूर कर मेरे अधिकारी मुझे स्कूल आने पर बाध्य कर सकते हैं तो बाकी लोगो को किस आधार पर छुट्टिया बांटी जा रही हैं यह बड़ा सवाल तो सिर्फ अधिकारी ही बता सकते हैं। हो सकता हैं कि मुझे प्रताड़ित करने का यह नया तरीका हो - शीतल दहलान , जिला अध्यक्ष , प्राथमिक शिक्षक संघ सोनभद्र
ऐसे किसी भी विद्यालय की शिकायत मिलने पर मैं स्वंय निरीक्षण करूंगा और जो भी दोषी होगा उस पर दंडात्मक कार्रवाई होगी। किसी भी स्थिति में विद्यालय बंद करने की अनुमति नहीं होती - गोरखनाथ पटेल , जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी , सोनभद्र
पिछले सप्ताह मंडे , ट्यूसडे , वेडनेसडे , थर्सडे तो मैं आया ही हूँ और अगले सप्ताह सोमवार से सीएल पर हूँ कल परसो नहीं अब स्कूल तरसो खुलेगा। संगीता और रूचि आती हैं पर वो मेडिकल लीव पर हैं ,कोरोना हुआ हैं उनको - हिरीश शाह ,अध्यापक उच्च प्राथमिक विद्यालय कोटा पिंडारी
साहब सप्ताह में दो दिन कुल मुश्किल से खुलता होगा स्कूल। यहाँ पढ़ाने थोड़े ही आता हैं कोई - ग्रामीण , कोटा पिंडारी
विजय शुक्ल (साथी प्रदीप जायसवाल का विशेष सहयोग )
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
सोनभद्र , दिल्ली। सोनभद्र की माटी से करीब हजार किलोमीटर दूर दिल्ली वाले एलएनआई की जो आजकल कुछ ज्यादा ही उछल रही हैं क्योकि उसको साफ़ साफ़ दिखता हैं कि कैसे सोनभद्र के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आदरणीय गोरखनाथ जी के परमप्रिय सहाय साहब ने सरकार की शिक्षा व्यवस्था को नेस्तानाबूद करने का ठेका ले रखा है बिलकुल अवैध खनन की भाँति, जहां जांच तो होती है पर ना तो डीएम साहब के बस में हैं कुछ, ना खनन अधिकारी के।
बहरहाल आज मुद्दा थोड़ा आसान सा हैं क्योकि आठ आठ महीने गायब रहने वाले गुरूजी श्रुतिदेव तिवारी साहब का तो हम कुछ उखाड़ नहीं पाए और ना ही ख़ाक फर्क पड़ता हैं कुछ गोरखनाथ जी पर और ना गवर्नर तक पहुँच रखने वाले म्योरपुर खंड शिक्षा अधिकारी सहाय साहब के ऊपर। चाहे कोई आये या ना आये माल आना चाहिए। भले ही स्कूल की वर्दी और कार्यालय मरम्मत के खजाने से जिसका छुटपुट ही सही प्रसाद सबमे बंटता जरूर होगा, पर ऐसे कयास लगाने का कोई मतलब नहीं हैं। क्योकि यह जिला सोनभद्र हैं और उस पर यह म्योरपुर का इलाका, जहां बीबी बच्चो सहित गुरूजी लोग भी स्कूली बच्चो का मोजा जूता पहनते हो ।
विधायक चेरो साहब वैसे तो दिल के दबंग आदमी हैं पर शायद उनकी भी इच्छा होगी की आदिवासियों के बच्चे अनपढ़ गंवार ही रहे वरना मजाल कि अनुप्रिया पटेल के अपना दल का विधायक जो सर्वहारो के उत्थान के प्रण के साथ सत्ता में हो उसके नाक के नीचे सहाय साहब का यह खेल जारी रहे।
दुःख तो इस बात का हैं कि ईमानदार छवि वाले डीएम साहब भी मजबूर हैं ऐसी व्यवस्था को निरंकुश चलते देखने के लिए। बहरहाल चलिए सहाय साहब को भी क्या कहा जाय वो वैसे भी सीता जैसा पवित्र चरित्र रखते हैं और गोरखनाथ जी कोई राम तो हैं नहीं जो लांछन लगते ही सीता जी को तड़ीपार कर देंगे।
एक छोटा सा सवाल हैं कि ऐसे कौन से अधिकारी हैं जिन्होंने कुल चार कर्मचारियों वाले उच्च प्राथमिक विद्यालय कोटा पिंडारी को बंद रहने की अनुमति दी होगी वो भी तब जब कोई सरकारी अवकाश न हो। जाहिर सी बात हैं कि इस पर भी सहाय साहब का मेडिकल लीव बोले तो अवकाश के सारे हथकंडे काम करेंगे। पर शायद जितनी जानकारी सरकारी कार्यालयों को लेकर मुझे हैं उस हिसाब से किसी भी हालात में स्कूल बंद करना अपराध की ही श्रेणी में आएगा। खैर जांच का खेल भी होता हैं वो भी यहाँ खेला जाएगा और शायद इसका हक़ शिक्षा विभाग को हैं ही। क्योकि बच्चो की पढ़ाई लिखाई नाम मात्र के लिए जरूरी हैं और अगर कोई इनके बारे में बोल दे तो लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया से मिले होने का ठीकरा फोड़कर उसको यह कोरोना में भी रगड़ देंगे।
एक तरफ जहां योगी जी का मिशन है उत्तर प्रदेश को एक नए मुकाम पर ले जाना वही सोनभद्र में वो भी म्योरपुर में खंड शिक्षा अधिकारी का मिशन हैं स्कूलों को बंद करवा अवकाश का तीर चलाकर शिक्षा को नयी उचाईयो पर ले जाना। गनीमत हैं कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी महोदय ने फ़ोन पर जांच और व्यक्तिगत विजिट करने की बात के साथ साथ कार्रवाई करने का आश्वासन भी दिया। पर किस पर सप्ताह में कुछ दिन स्कूल खोलने वाले गुरूजी शाह साहब पर या कई ऐसे स्कूलों को बंद कर अवकाश पर घर बैठकर मलाई काटने वाले गुरूजी लोगो को खुल्लम खुल्ला आजादी देने वाले सहाय साहब पर।
क्यों ना ऐसे स्कूलों पर गैर हाजिर रहने वाले गुरूजी लोगो के वेतन के बराबर का हिस्सा सहाय साहब के वेतन से उड़ा दिया जाय ?
क्यों ना इसमें स्कूल प्रभारियों के साथ साथ खंड शिक्षा अधिकारी की भी जिम्मेदारी तय की जाय ?
क्या शिक्षा विभाग गैरहाजिर रहने वाले गुरूजी लोगो का डाटा सार्वजानिक कर सकता है जो सरकारी पैसे पर मौज उड़ा रहे हैं और गरीब आदिवासी बच्चो को अशिक्षा की गर्त में झोक रहे हैं ?
बहरहाल आपको बता दें कि सीधी सपाट बात रखने वाले व्यक्तियों को सहाय साहब यहाँ तक कि गोरखनाथ जी जैसे सुलझे हुए व्यक्ति बीमारी में स्कूल में आने के लिए बाध्य करते हैं, उनकी छुट्टियों को नामंजूर करते हुए जबकि उसी और आस पास के स्कूल से कई शिक्षा मित्र , अनुदेशक और गुरूजी लोग सदियों से गायब हैं। कोटा पिंडारी का यह उच्च प्राथमिक विद्यालय तो एक नमूना मात्र हैं। ऐसे कितने स्कूल और गुरूजी मंत्री मिनिस्टर की बेटी या बेटे होने का फायदा उठा रहे होंगे यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा वो भी तब जब कोई शिकायत करेगा और वो जांच के खेल में सही पाया जाएगा ।
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