अदालत के आदेश से पहले बिल्डिंग थी वैध , अब बस एक फ्लोर हुआ अवैध , बाकी फ्लोर पर तो अब भी जल रही है बत्ती
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ़ इंडिया
दिल्ली। किसान आंदोलन का जायज या नाजायज होना सिर्फ इस बात से साफ़ हो जाता हैं कि दिल्ली में बिजली का सर्वाधिकार रिलायंस के पास और टाटा के पास हैं। टाटा का तो राम जाने पर रिलायंस का रवैया तो बस केजरीवाल;जी और मोदी जी पर भी भारी ही दिख रहा हैं। जनता पर तो उनका ऐसा रहमोकरम हैं कि क्या औकात कि कोई यह पूछ ले कि कोरोना काल में बिजली के मीटर की रीडिंग्स लिए बिना पिछले साल के तजुर्बे के आधार पर वसूले गए ज्यादा बिल का क्या होगा और उसको कैसे वापस करेंगे ?
बहरहाल आज आपको हम एक किस्सा सुनाते हैं यह किस्सा हैं आश्रम के एक भवन का जिसका निर्माण ना जाने एमसीडी के किस अधिकार और नक़्शे के आधार पर हुआ होगा क्योकि आरटीआई में तो एमसीडी के पास कुछ जानकारी ही नहीं हैं ना इस भवन की और ना इसके मालिकान की। चलो पर निजामुद्दीन बिजली कार्यालय में बैठे सैनी यादव और कुमार टाइप के बाबू साहब लोगो ने तो धमाल मचा रखा हैं। इतिहास के पन्नो में दर्ज उनके द्वारा लगाए गए मीटर के बिल के भुगतान की रसीद अगर काफी न हो तो आज भी इस भवन में जल रही बाकी फ्लोर की बत्तिया इसका गवाह हैं कि यह नाजायज गोरखधंधा करने में यह सब शामिल हैं। वरना आज जब अदालत ने बिजली विभाग को मीटर उस फ्लोर पर रह रहे व्यक्ति के नाम लगाने का आदेश दिया जिसको मकान मालिक जो की पेशे से किराना दूकान चलाते चलाते अपनी मेहनत और लगन से खुद के बूते पर आज बड़े बड़े मकान बनाने में लगे हुए हैं और अब हीरे जवाहरात का धंधा भी कर रहे हैं खनन के साथ साथ, की विनती आग्रह और उनके किसी करीबी जानकार सैनी जी के रसूख के कारण और यादव जी जैसे बड़े अधिकारी की अपनी वाकपटुता वाली निर्विवाद शैली के दबाव में आकर बिजली विभाग ने मीटर उखाड़ने की जो तुगलकी प्रक्रिया की थी उसके जबाब में तो मानो यादव जी के नेतृत्व में चल रहा रिलायंस बीएसईएस का निजामुद्दीन बिजली महकमा पूरा सचेत भी हो गया और जिम्मेदार भी। और तत्काल दो दिनों के अंदर बिजली मीटर लगाने के कोर्ट के आदेश को दरकिनार करते हुए उसकी समय सीमा पार करके यह जबाब दे दिया कि यह बिल्डिंग नियम कानून के दायरे में नहीं आती।
क्या आजकल हमारी अदालतों के न्याय के ऊपर यह रिलायंस वाली बीएसईएस भारी पड़ रही हैं या आम आदमी जो माननीय अदालत और न्याय की कुर्सी पर बैठे माननीय न्यायधीशों में अपनी आस्था रखता हैं उसके साथ खिलवाड़ कर रही हैं। आपको बता दे कि न अजाने किस बड़ी शक्ति का प्रदर्शन करके बिजली विभाग को आरटीआई से बाहर रखा गया हैं और अगर यह सब जायज और अदालत के नजरिये से सही हैं तो किसान आंदोलन किसानो के नजरिये से शत प्रतिशत सही हैं।
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