मैंने सोचा था की टीचर बनकर नयी नयी तकनीक से बच्चो को पढ़ाऊंगी , पर क्या पता था कि हम चुनाव करवाएंगे , टॉयलेट बनवायेगे या बिल्डिंग बनवायेगे - शीतल दहलान , जिलाध्यक्ष , प्राथमिक शिक्षक संघ , सोनभद्र
आपको क्या लगता हैं कि हमें टॉयलेट नहीं साफ़ करना या करवाना पड़ता , विभाग ने कौन सा सफाई कर्मी दे रखा हैं - शीतल दहलान
पहले तो यह नहीं पता कि इस चुनाव के बाद हम ज़िंदा वापस आएंगे या नहीं , और आएंगे तो रहेंगे कहाँ , परिवार को तो खतरे में डाल नहीं सकते और चुनाव आयोग या विभाग को इसकी फ़िक्र कहा -शीतल दहलान
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
दिल्ली। हजार किलोमीटर दूर बैठा मैं आज न जाने क्यों एक बात पर अटक गया वो भी बेसिक शिक्षा विभाग पर। अब आप सोच रहे होंगे कि यह कौन सी नयी बात हैं आज तक मैंने सहाय साहब से लेकर श्रुति देव तिवारी जी के अलावा स्कूलों से गैरहाजिर शिक्षकों पर हल्ला मचाया ही हैं। और गाहे बगाहे मैंने बेसिक शिका अधिकारी गोरखनाथ पटेल जी को भी लपेटा शिक्षा विभाग के हालात पर। पर वो सब जायज हैं मुद्दों पर आवाज उठाना।
लेकिन आज मैं अटका इसलिए कि एक दोहा गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागू पाय , बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दिए बताय ना जाने कहा से कान में गूँज पड़ा और तभी चुनाव आयोग की चाकरी करने के लिए गए एक शिक्षक की मौत कार दुर्घटना में होने का समाचार पढ़ा। और अब तक काल के गाल में समा गए कई शिक्षकों की खबर होने के बावजूद भी गर्भवती , कोरोना पॉजिटिव और शारीरिक रूप से अक्षम शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी पर जबरन लगाए जाने की व्यवस्था पर बड़ा दुःख हुआ।
एक शिक्षक जो हम जैसो को पढ़ना लिखना और हमारे अधिकारियों और नेताओ को इस लायक बनाने तक की सबसे अहम् कड़ी हैं उसका उपयोग पार्किंग और शौचालय साफ़ सफाई करवाने की व्यवस्था में लगाना दरअसल शिक्षा और समाज दोनों का अपमान हैं। चुनाव आयोग या कार्मिक विभाग चुनावी प्रक्रिया के लिए मनरेगा जैसी कोई वैकल्पिक व्यवस्था लाये या बाकी विभागों के लोगो की चाकरी लगाए । शायद शिक्षा का कायाकल्प तभी संभव हैं जब शिक्षकों के इस दुरपयोग का कायाकल्प होगा।
प्राथमिक शिक्षक संघ की जिलाध्यक्ष शीतल दहलान ने बड़ी बात की। उन्होंने कहा कि शिक्षकों और हमारे अधिकारियों की कोई कद्र नहीं हैं। हमें बिल्डिंग बनवाने , जनगणना करने , चुनाव दिलवाने और शौचालयों को साफ़ करवाने के काम के साथ साथ बिल पर सिग्नेचर करवाने के लिए प्रधानों के चक्कर काटने पड़ते हैं। क्या ग्राम विद्यालय के रख रखाव और उसके साफ़ सफाई के साथ बिल साइन करने की जिम्मेदारी ग्राम प्रधान की नहीं हैं। हम सरकारी नौकर हैं पर शिक्षक हैं। क्या चुनाव में ड्यूटी जाते वक्त हमारे लिए कोई सुरक्षा व्यवस्था हैं। क्या किसी को चिंता हैं की इस कोरोना काल में हम मौत के मुहं में जा रहे हैं वो भी तब हैं और हालात खराब हैं तो जाने से पहले हमें यही पता नहीं हैं कि हम लौट कर आएंगे कि नहीं।
और जब लौटकर आएंगे तो रहेंगे कहा क्योकि हम इन सबके लिए अपने परिवार को तो खतरे में नहीं डाल सकते, सात दिन अलग कहा रहेंगे और उस बीच हमारे बच्चो का और परिवार का ध्यान कौन रखेगा ? क्या यह प्रधान और चुनाव आयोग आएगा शायद कभी नहीं। आप ही बताईये कि हम सब लोग पढ़ाने के लिए आये हैं बच्चो और समाज का भविष्य बनाने के लिए। पर यहां तो पढ़ाई के अलावा बाकी सब काम से हमारी एनालिसिस की जा रही हैं। हम शिक्षक जब बन रहे थे तब यह कही नहीं लिखा था कि ग्राम प्रधान के सामने हमें एक एक बिल पर सिग्नेचर करवाने के लिए घंटो इन्तजार करने के साथ साथ चढ़ावा भी चढ़ाना पड़ेगा।
शिक्षकों का दर्द शायद ही कोई समझता हो , हमें पढ़ाने दीजिये , हम सब पढ़ने पढ़ाने के अच्छे तरीके अपनाकर समाज का कायाकल्प करेंगे ना कि सरकार द्वारा दी गयी नौकरी का उपयोग चुनाव और पार्किंग या शौचालय के देख रेख में। पता नहीं कितने लोग इस कोरोना में चले गए और कितने जायेगे पर यह सोचने से ज्यादा हमारे लिए हमें अपनी नौकरी को भी बचाना जरूरी हैं। तो ड्यूटी तो करना ही पडेगा।
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