आया ऊँट पहाड़ के नीचे , डीटीपी आरएस बाठ ने पूर्व विधायक उमेश अग्रवाल और अवैध निर्माण कर्ताओ के ऊपर अपनी इज्जत का फालूदा बनांने को लेकर दर्ज की एफआईआर
- जनता के बीच अखबारों और सोशल मीडिया पर उनकी छवि खराब करने और अदालती फरमान को तोड़ मरोड़कर प्रसारित करने के सम्बन्ध में
- पूरे कानूनी तौर तरीके से की गयी थी अवैध निर्माण की तोड़ फोड़ की कार्रवाई , पूर्व विधायक ने अदालत की अवमानना करने का लगाया था आरोप और बनाया पूरा भौकाल
विजय शुक्ल
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
दिल्ली। मामला गुरुग्राम का हैं और वो भी पूर्व विधायक उमेश अग्रवाल साहेब से जुड़ा हैं अवैध कब्जे की तोड़ फोड़ की कार्रवाई करने वाले डीटीपी आर एस बाठ को अदालती स्टे ना मानकर जबरिया उनकी चर्चाओं में अवैध बन रही प्रॉपर्टी को तोड़ने को लेकर। जिस पर उन्होंने जिसमे वो बहुत माहिर हैं अपनी मीडिया प्रबंधन टीम के साथ अदालत की अवमानना का प्रचार प्रसार किया। ढिंढोरा या मुनादी इतनी जबरदस्त थी की गुरुग्राम का बच्चा बच्चा इस सरकारी अधिकारी को ही गलत मान बैठा। अब यह कोई उनका बलात्कार का या अवैध कॉलोनी का कोई आरोप तो था नहीं जिस पर उनकी काट दी गयी थी अरे भाई टिकट भाजपा के द्वारा। यह मामला था एक रसूख दार सरकारी फरमानो को मानने वाले अधिकारी का जिसने एक तो इतनी हिम्मत दिखाई की वो खड़ा हो गया अवैध कब्जे को तोड़ने के लिए वो भी इतने कद्दावर आदमी के सामने जो आज के मौजूदा मुख्यमंत्री की तख़्त पलटने का खेल खेल सकता हो। उसको खबरिया माहौल बनाने में भला क्या दिक्कत।
बहरहाल सेक्टर 14 में एक प्रथिमिकी संख्या 0200 IPC १८६० के तहत धारा १२० बी , ४६६, ४६९, ४९९ और ५०० में मामला दर्ज किया गया हैं . जिसमे यह प्रथिमिकी लिखे गयी हैं कि अदालत ने जुलाई १, २०२१ को इस मामले की जांच का समय निर्धारित किया गया है पर पूर्व विधायक महोदय ने अपने साथियो के साथ खबरिया भौकाल के तहत इस अफसर और बाकी के अन्य सरकारी तीमारदारों के खिलाफ इनकी इज्जत का फालूदा बनाने का पूरा माहौल तैयार किया हैं और अदालत का सम्मन व्हाट्सप्प से लेकर अखबार में हर तरफ मुनादी के पर्चे और इस्तिहार की तरह छपवाकर उनकी आधिकारिक छवि का हनन कर दिया हैं। बाकी की समझ के लिए आप प्रथिमिकी खुद ही पढ़ सकते हैं हम थोड़ा पत्रकार फ़र्ज़ी और फिरौती वाले हैं लोगो को ब्लैकमेल करते हैं उनकी रेप टाइप की खबर छापकर ऐसा मैं नहीं अदालत में चल रहा मामले में हैं इन्ही पूर्व विधायक जी के कारण। माननीय अदालत की गरिमा हैं और एक सरकारी अफसर और पत्रकार कभी भी उनकी अवमानना नहीं कर सकता। पर क्या एक अधिकारी के खिलाफ बनाया गया यह माहौल राजद्रोह की श्रेणी में आता हैं यह शायद मुझे नहीं पता हैं क़ानून के जानकारों को पता होगा। अगर कार्रवाई हुई हैं तो यह जमीन अवैध हैं क्या ? अगर अवैध हैं तो स्टे किसके खिलाफ हैं ? और अवमानना माननीय अदालत की किसने की अधिकारी ने या अदालती फरमान को भौकाल बनाकर सरकार और सरकारी अधिकारियों की छवि खराब करने वालो ने ? यह सब सवाल हम नहीं पूछ सकते यह हमारी औकात से बाहर हैं। पर यह प्राथमिकी सरकारी अधिकारी के द्वारा अपनी इज्जत बचाने के लिए उठाया गया एक साहसिक कदम हो सकता हैं।
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