आसिफ़ अशरफ मीर
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
कुलगाम। भारत देश में महिलाओं के साथ अत्याचार होना कोई नई बात नहीं है. यहां हमेशा वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए महिला को अपने जीवन की आहुति देनी पड़ती है. सब कुछ सहते हुए भी अपने साथ हो रहे अत्याचार पर विरोध नहीं करती. क्योंकि वो यह जानती है कि समाज में उसकी कोई नहीं सुनेगा. और इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा सचमुच देश की एक बड़ी समस्या है, जिसे तत्काल हल किए जाने की जरूरत है. आपको बता दे कि भारत सरकार द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर में 18-49 साल की 12 प्रतिशत महिलाएं या तो यौन या शारीरिक हिंसा का सामना कर रही हैं.
जानकारी के मुताबिक, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा आंकड़ों में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में 18-49 वर्ष की आयु की महिलाओं के बीच 12 प्रतिशत शारीरिक या यौन हिंसा देखी गई है. "जम्मू-कश्मीर में, 18-49 आयु वर्ग की कम से कम 10 प्रतिशत महिलाओं ने शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है और तीन प्रतिशत ने यौन हिंसा का अनुभव किया है और इनमें से कम से कम 10 प्रतिशत महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है और दो प्रतिशत ने शारीरिक और यौन हिंसा का अनुभव किया है. 2015-16 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारत में 15-49 आयु वर्ग की 30 फीसदी महिलाओं को 15 साल की आयु से ही शारिरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से मिली जानकारी के मुतीबिक गर्भवती महिलाओं ने भी शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है. बता दे कि महिलाओं द्वारा अपने पति से विभिन्न प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है. भारत सरकार ने कहना है कि 9 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने अपने पति द्वारा की गई किसी भी प्रकार की शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है. वहीं चार प्रतिशत ने महिलाओं ने अपने पति द्वारा किसी भी रूप में की गई यौन हिंसा का अनुभव किया है. जबकि आठ प्रतिशत ने अपने पति द्वारा की गई किसी भी प्रकार की भावनात्मक हिंसा का अनुभव किया है. वहीं आंकड़े बताते हैं कि पांच प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने अपने पति द्वारा थप्पड़ मारे जाने की रिपोर्ट की, जबकि 3-4 प्रतिशत रिपोर्ट को धक्का दिया, हिलाया, या उन पर कुछ फेंक दिया गया या उनकी बांह मुड़ गई या बाल खींचे गए, लात मारी, घसीटा गया, या पीटा गया या मुक्का मारा गया. एक मुट्ठी या ऐसी चीज़ से जो उसे चोट पहुँचा सकती है. इससे यह भी पता चलता है कि एक ही आयु वर्ग की एक प्रतिशत महिलाओं ने चाकू, बंदूक या किसी अन्य हथियार से धमकाने या हमला करने का अनुभव किया है.
जंहा एक तरफ प्रदेश में महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ी है. वहीं दूसरी ओर थानों में शिकायतें सुनने या फिर थानों का माहौल कैसा है, इससे हर कोई वाकिफ नहीं है. महिलाओं के साथ बहुत सी ऐसी समस्याएं हैं, जो वो एक महिला से ही साझा कर सकती हैं. इसके लिए महिला आयोग एक बड़ा प्लेटफार्म था। यह एक अहम संस्थान था. जिसका पुनर्गठन होना बेहद जरूरी है. बेशक इसकी कमान केंद्रीय आयोग के हाथ ही हो, लेकिन प्रदेश में इसका कोई कार्यालय तक नहीं तो महिलाएं कहां अपनी शिकायत लेकर जाएं
घरेलू हिंसा के मुख्य कारण जो भी हो लेकिन भारत अभी तक हमलावरों की मानसिकता का अध्ययन करने, समझने और उसमें बदलाव लाने का प्रयास करने के मामले में पिछड़ रहा है. आमतौर पर कह सकते है कि बदनामी के डर से काफी बड़ी संख्या में ऐसे मामले दर्ज ही नहीं हो पाते, खासतौर पर तब जब पीड़िता को अपने पति, परिवार के सदस्य या किसी अन्य परिचित के खिलाफ शिकायत दर्ज करानी हो.अफसोस की बात है कि घरेलू हिंसा के मामलों में यह वृद्धि केवल भारत तक ही सीमित नहीं है. लॉकडाउन ने दुनिया को एक ठहराव की स्थिति में ला दिया था और इसके साथ ही दुनिया भर में महिलाओं के जीवन को एक अपमानजनक स्थिति में हैं यदि हम दुनिया भर की रिपोर्ट्स को देखें तो लॉकडाउन के दौरान नियमित आधार पर एक ही हिंसा को बार-बार दोहराया गया और कुछ नहीं किया गया तो ऐसे ही और ज्यादा मामले सामने आते ऱहेंगे.
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