सुशील शर्मा
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
शिमला। हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में चट्टान गिरने से रविवार को 9 लोगों की दुखद मौत हो गई. हादसे से पहले भी कुदरत ने संकेत दिए थे लेकिन किसी की नींद नहीं खुली. यह दुर्घटना किन्नौर जिले में बटसेरी के पास जिस जगहें चट्टाने गिरने से छितकुल से सांगला की ओर आ रही सैलानियों की गाड़ी भूस्खलन के कारण चट्टानों की चपेट में आने से हुई.
आपदा प्रबंधन के लिए जरूरी हैं सड़क खुलवाना पर एक दिन पहले के हादसे से लेना चाहिए था सबक
यदि आपदा प्रशासन समय रहते कोई एहतियाती कदम उठा लेता और उस रास्ते पर रोक लगा देता, तो इन लोगों की जान बच सकती थी. लेकिन प्रशासन ने एक दिन पहले भू स्खलन मे आये पत्थर चट्टानें हटाकर इस रास्ते को खोल दिया था. लेकिन, लोगों के आने जाने पर रोक नहीं लगायी. आपदा प्रबंधन व्यवस्था पर यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है.
एनएचएआई के निर्माण कार्य में पहाड़ों की कटिंग मौत को दे रही बुलावा
हिमाचल में चारो तरफ सड़क जाल बिछाया जा रहा हैं जिसके लिए पहाड़ों को काटकर रास्ते को चौड़ा किया जा रहा हैं पर पहाड़ों की गलत कटिंग तकनीक आए दिन पहाड़ों पर हादसे और मौत को दावत दे रही है. और यह वाले समय में इसी तरह के बड़े हादसों का कारण बनेगी।
यूँ भी देखा जाये तो जहां प्रदेश मे उच्च मार्ग या दूसरी सड़कें बनी हैं वहां ढलान कटाई होनी जरूरी है, ना कि सीधी कटाई. धमाकों से चट्टानें उड़ाने की बजाय, उनकी छिलाई कराके उन्हें काटा जाना जरूरी होता है, क्यूंकि हिमालय पहाड़ अभी कच्चे हैं, और धमाकों से ये कमजोर पड़ जाते हैं.
फ़िर इन सड़कों पर भूस्खलन रोकने के लिए यहां पक्के डंगे , जालीदार पक्के डंगे तो लगाये ही जाते हैं, पर सीधी कटाई में ऊपर से आया भूस्खलन उन्हें भी गिरा देता है. चाहिए तो यह कि ऊपर जहां जमीन छीली जा रही है वहां भूस्खलन रोकने के लिए जैविक उपाय, जैसे घास और झाड़ी नुमा वानस्पतिक लगाना भी जरूरी है वर्ना भूस्खलन कई सालों साल इसी तरह हादसों को अंजाम देते रहेंगे.
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