गिरमिटिया देश में बजेगा हिंदी का डंका
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया
दिल्ली। विश्व हिंदी सम्मेलन हिंदी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिंदी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिंदी प्रेमी जुटते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रति जागरूकता पैदा करने, समय-समय पर हिंदी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखक और पाठक दोनों के स्तर पर हिंदी साहित्य के प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिंदी के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावुकतापूर्ण व महत्त्वपूर्ण रिश्तों को और अधिक प्रगाढ़ बनाने एवं मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से 1975 में विश्व हिंदी सम्मेलनों की श्रृंखला आरम्भ की गई थी।
अंग्रेज जिस फिजी देश में भारतीयों को बंधुआ-मजदूर बना कर ले गए, वही गिरमिटिया लोग वहां मातृभाषा हिंदी का डंका बजाते रहे। उसी फिजी देश में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन के परिप्रेक्ष्य में अनुराधा पांडेय ने विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव रवीन्द्र जायसवाल से विशेष बातचीत की... प्रस्तुत है उस बातचीत के प्रमुश अंश:
12वां विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन कहां और कब किया जा रहा है?
इस बार 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन फिजी में किया जा रहा है। यह पहला मौका है जब प्रशांत (पैसिफिक) क्षेत्र के किसी देश में यह सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। यह सम्मेलन अगले साल 15 से 17 फरवरी तक भारतीय विदेश मंत्रालय और फिजी सरकार द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। इस सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे। यह सम्मेलन फिजी के नाडी शहर में होगा।
फिजी में हिंदी की क्या स्थिति है?
फिजी में हिंदी भाषा न सिर्फ प्राइमरी, सेकेंडरी स्कूलों, यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई जाती है, बल्कि फिजी के संविधान में इसे आधिकारिक भाषा का दर्जा हासिल है। फिजी में हिंदी की शुरुआत 1879 से 1916 के बीच मानी जाती है। उस समय फिजी और भारत पर अंग्रेजी शासन था। बताया जाता है कि उस समय गन्ना के खेतों में काम करने के लिए भारत से करीब 60,000 मजदूरों को फिजी लाया गया था। इनमें अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के थे। संयुक्त राष्ट्र (2020) के अनुसार, फिजी की जनसंख्या करीब 8,96,000 है और उनमें से 30 प्रतिशत से अधिक लोग भारतीय मूल के हैं।
फिजी में हिंदी प्रयोगशाला खोलने की बात की गई थी?
फिजी में हिंदी की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत की ओर से एक भाषा प्रयोगशाला भेंट की जाएगी, जिसके माध्यम से लोगों को सुगमता से हिंदी सीखने में मदद मिलेगीl
इस सम्मेलन के शुभंकर (लोगो) का निर्माण कैसे किया गया?
विश्व हिंदी सम्मेलन के शुभंकर का चयन एक विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्धा के माध्यम से किया गया। इसके लिए 1436 प्रविष्टियां प्राप्त हुई थीं और इनमें से 78 प्रविष्टियों पर अंतिम रूप से विचार करने के बाद मुंबई के मुन्ना कुशवाहा द्वारा परिकल्पित शुभंकर का चयन किया गया। विजेता को 75 हजार रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाएगा।
देश के विदेश मंत्री श्री एस.जयशंकर ने सम्मेलन के लोगो और वेबसाइट का शुभारंभ किया। इस दौरान विरासत और कला मंत्रालय की स्थायी सचिव अंजीला जोखान ने कहा कि पैसिफिक क्षेत्र में इस सम्मेलन का आयोजन करने वाला पहला देश बनना फिजी का सौभाग्य है।
इस सम्मेलन का विषय क्या रखा है और कितने सत्रों में इसका आयोजन किया जाएगा?
इस सम्मेलन का विषय -परंपरागत ज्ञान से कृत्रिम मेधा तक- रखा गया है और यह सम्मेलन 8 विशेष सत्रों के साथ-साथ हिंदी के काल दर काल हिंदी का दायरा कैसे व्यापक होता गया इस विषय पर आधारित होगा।
अब तक कितनी बार विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन किया गया है ?
अब तक दुनिया के 11 अलग-अलग देशों में विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा चुका है। फिजी के साथ ही न्यूजीलैंड, सिंगापुर, मॉरीशस समेत कई देशों में हिंदी भाषा का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी की क्या स्थिति है?
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भाषा के तौर पर मान्यता दिलाने के लिए विदेश मंत्रायल लगातार प्रयासरत है। यूनेस्को द्वारा अलग-अलग समाचार पत्रों, सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म पर हिंदी का इस्तेमाल किया जाता है। मेरा मानना है कि हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने में अभी थोड़ा समय लग सकता है।
इस कार्यक्रम से किन्हें लाभ प्राप्त होगा?
सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए उल्लेखनीय प्रयास कर रही है। मेरा मानना है कि भारत और विदेश में रहने वाले हिंदी प्रेमी, विद्वान तथा शिक्षण संस्थान इस सम्मेलन में उत्साहपूर्वक भाग लेंगे और इसका भरपूर लाभ उठाएंगे।
( यह साक्षात्कार पत्रकारिता के पारखी वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभात रंजन दीन जी द्वारा अग्रसारित हैं उनका आभार)
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