गब्बर सिंह वैदिक,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
हिमाचल: बात करते है हिमाचल प्रदेश की।सरकार चाहे किसी भी दल की हो।मुख्यमंत्री कोई भी हो।विकास के लिए और विकास की राह पर सभी कार्य करते है।मंत्री कोई भी हो या विधायक कैसा भी हो सभी अपने क्षेत्र व विभाग को मजबूत बनाने के लिए कार्य करते है।शिक्षा ,स्वास्थ्य, सड़क या अन्य कोई मूलभूत सुविधाएं हो।
लेकिन जब बात आती है विकास को जमीन पर करने की तो न जाने उस कार्य कौन सा ग्रहण लग जाता है।पहले तो फ़ाइल बनाते -बनाते जमाना गुजर जाता है और अंततः फाइल तैयार हो जाती है फिर वही चली हुई रीत फाइल एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर, एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक पहुचने में महीने नहीं बल्कि सालें बीत जाती है।लोगो की भी उम्र बीत जाती है।लेकिन फाइल के जाल में फंसे रहते है। क्या ये गलती सरकार की है या विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों की।सरकार की ओर से किसी भी योजना के तहत कोई भी बजट मुहैया करवाया जाता है तो जमीन तक पहुंचते उसे दशक लग जाते है।
जैसे कि उदाहरण के तौर पर हम बात करते है राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला कशोली की।इस पाठशाला में लगभग छटी से बाहरवीं तक 250 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण करते है।पिछले दस सालों से यह विद्यालय मिडिल स्कूल के भवन में ही चल रहा है।बहुत सारी कक्षाएं खुले आसमान के नीचे ही लगानी पड़ती है।छात्रों के साथ साथ अध्यापकों को भी बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।पूर्व डबल इंजन की सरकार से इस विद्यालय के लिए भवन की मांग की थी।लेकिन फाइल अभी तक अधिकारियों के इर्द-गिर्द ही घूम रही है।
अधिकारियों से बात करो तो उनके पास बहाने ही हजार है।कभी अपने से नीचे के कर्मचारियों को दोष देना,कभी काम का बोझ बताना या अंतिम एक ही जवाब:-अरे मुझे तो याद ही नहीं रहा,अभी कर देता हूँ।फिर भी फाइल को अंतिम रूप नहीं मिल रहा है।
क्या ये अधिकारियों की नालायकी है या सिस्टम का दोष।जिस फाइल को बनाने या अंतिम रूप देने में दो या तीन दिन लगते वहां वहाँ सालें क्यूं बीत जाती है
सरकार अगर सख्ती के साथ एक कार्य को पूरा करने के आदेश दे दें तो काफी हद तक इस फ़ाइल के झन्झट से राहत मिल सकती है। ताकि कागजो में हो रहा विकास जमीनी स्तर पर उतर जाए।
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